Makar Sankranti 2024: सूर्य आराधना का महापर्व मकर संक्रांति भगवान भाष्कर के उत्तरायण होने का काल है. दक्षिणायन में धरतीवासियों पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और उत्तरायण में ग्रह राज सूर्य देव का. जीव की उत्पत्ति और जीवन को साकार करने वाले भगवान भाष्कर हैं. बिना इनके जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. धरती पर सर्व प्रमुख ऊर्जा के केन्द्र के रूप में भी विराजते हैं.
पुराणों में भगवान सूर्य को आरोग्यता, ऐश्वर्य, धन, पुत्र, सुख, इच्छा, परिवार, विकास, मोक्ष तक की प्राप्ति का कारक माना गया है. ज्योतिषशास्त्र में उत्तरी गोलार्द्ध को देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. दक्षिण गोलार्द्ध में पितरों का क्षेत्र माना जाता है. सूर्य देव के उत्तरायण काल मकर राशि से मिथुन राशि तक तथा दक्षिणायन कल कर्क राशि से धनु राशि तक, अर्थात भगवान भाष्कर छह माह उत्तरायण व छह माह दक्षिणायन रहते हैं.
सूर्यास्त तक पुण्य काल : पंडित उदयभान मिश्र के अनुसार सूर्य या किसी ग्रह का एक राशि से दूसरे राशि से प्रवेश को संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है. जब ग्रहराज सूर्यदेव का धनु व मीन राशि पर संचरण होता है तो इसे खरमास कहा जाता है. इस बार सूर्यदेव का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को सुबह 09 बजकर 13 मिनट पर होगा. अतः इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी. संक्रांति जनित पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 09:15 मिनट से सूर्यास्त तक रहेगा. इस बार मकर संक्रांति को ‘अमृत योग’ अद्भुत संयोग होगा. यह अपने आप में बेहद खास है. ऐसा योग शताब्दी में एक या दो ही बार आता है. उत्तरायण में देवताओं का दिन व दैत्यों की रात्रि मानी जाती है.
इस बार पौष में संक्रांति : हालांकि प्रायः मकर संक्रांति माघ स्नान के प्रमुख पांच स्नानों में से एक होता है. लेकिन इस बार पौष माह में मकर संक्रांति पड़ रही है. तुलसीदास जी भी कहते हैं, ‘माघ मकरगति रवि जब होई – अर्थात माघ मास में मकर से जब सूर्य का संचरण होता है, उसका बड़ा ही महत्व होता है.’ मकर संक्रांति पर काशी, प्रयाग, गंगासागर में गंगा स्नान का बहुत बखान पुराणों में मिलता है. जो लोग गंगा स्नान न कर पाएं, उन्हें स्वस्थान पर ही नदी, कुंआ, बावड़ी इत्यादि पर मां गंगा का स्मरण कर स्नान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है. मकर संक्रांति पर गंगा या गंगासागर में स्नान का अत्यधिक महत्व बताया गया है. कहा गया है कि सब तीरथ बार-बार, सागर एक बार.
गंगा अर्घ्य चढ़ायें, गरीबों में करें दान : इस दिन स्नान के बाद भगवान भाष्कर को अर्घ्य देना चाहिए. तदुपरांत, सूर्य चालीसा, सूर्य मंत्र, गायत्री मंत्र, आदित्यह्दयस्रोत इत्यादि का पाठ – जप करना चाहिए. इस दिन किये गये दान का सर्वाधिक महत्व होता है. दान में कंबल, घृत, ऊनी वस्त्र, अन्न, स्वर्ण, तिल, गुड़, खिचड़ी आदि का दान असहायों, गरीबों, ब्राह्मणों देना चाहिए. जिससे अनंत फल की प्राप्ति होती है. उत्तरायण के सूर्य का पुराणों में महत्व सर्वोपरि बताया गया है. द्वापर में महाभारत काल में बाणशैय्या पर पड़े भीष्म पितामह सूर्यदेव के उत्तरायण होने अर्थात, मकर संक्रांति पर ही देहत्याग किये थे. वहीं, कपिलमुनि के श्राप से सगर के 60 हजार पुत्रों को भी तर्पण से इसी दिन मां गंगा मुक्ति दी थी.