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Holi ke Rang: ये वसंत का एकांत…ये रंगों की उदासी!

Holi ke Rang: ये वसंत का एकांत…ये रंगों की उदासी!

Holi ke Rang: होली का त्योहार बीत चुका है, लेकिन इसकी चर्चा अभी भी प्रासंगिक है। भारतीय समाज में त्योहारों का महत्व केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन में उत्साह और उमंग का संचार करना है। वसंत ऋतु का आगमन, लहलहाती गेहूं की बालियां, आम के बगीचों में मंजरियों की बहार, और हर दिन नई उम्मीद के साथ उगता सूरज – यह सब मिलकर होली के उत्सव को और भी खास बना देते हैं।

डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में,
अब के होली में बनाना गुल को जोगन ऐ सबा।

यह शेर वसंत की सुंदरता और होली के उल्लास को बखूबी व्यक्त करता है। परिवार और समाज में खुशियों के रंग भरने का यह त्योहार हमें एकता और भाईचारे का संदेश देता है।

लेकिन क्या इस बार की होली सभी के लिए उतनी ही खुशियां लेकर आई? शायद नहीं। होली के दिन लोग समूहों में निकले, रंगों से खेले, और खुशियां मनाने की कोशिश की। लेकिन कुछ लोग अकेले रह गए, अपनों से दूर, किसी के आने का इंतजार करते हुए।

चले भी आओ भुला कर सभी गिले-शिकवे,
बरसना चाहिए होली के दिन विसाल का रंग।

शहर के एक हिस्से में लगभग 200 परिवारों के बीच जो दृश्य देखने को मिला, वह एक बड़े सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। कुछ लोग अपने पड़ोसियों से भी कट गए, जिनसे वे पूरे साल नहीं मिले थे। वे होली के दिन भी अकेले रहे, शायद किसी की आवाज सुनने के लिए तरसते रहे।

दूसरी ओर, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने दूसरों का खुले दिल से स्वागत किया, उनके साथ रंग खेले, और होली की खुशियों को साझा किया। ये वे लोग थे जो समाज के सुख-दुख को अपना मानते हैं, जो दूसरों की खुशियों में खुश और दुखों में दुखी होते हैं। यही तो मानवता है।

लेकिन क्या मानवता का ह्रास हो रहा है? यह सवाल आज के समय में महत्वपूर्ण है। बाजार आधारित अर्थव्यवस्था ने हमें सुख-सुविधाओं की गारंटी तो दी है, लेकिन क्या वह मानवता की भी गारंटी दे सकती है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।

आजकल, लोग अपने घरों में सिमट गए हैं, पड़ोसियों से मिलना-जुलना कम हो गया है, और सामाजिक संबंध कमजोर हो रहे हैं। ऐसे में, त्योहारों का महत्व और भी बढ़ जाता है। ये हमें याद दिलाते हैं कि हम एक समाज का हिस्सा हैं, और हमें मिलकर रहना चाहिए।

होली का त्योहार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं? क्या हम अपने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या हम मानवता के मूल्यों को बचाए रख पा रहे हैं?

यह त्योहार हमें एक मौका देता है कि हम अपने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के करीब आएं, और समाज में प्रेम और सद्भाव के रंग भरें। हमें यह याद रखना चाहिए कि असली खुशी दूसरों के साथ खुशियां बांटने में है, न कि अकेले रहने में।

होली के रंग हमें यह भी सिखाते हैं कि हमें अपने जीवन में उत्साह और उमंग को बनाए रखना चाहिए। हमें हर दिन को एक नई शुरुआत के रूप में देखना चाहिए, और अपने आसपास के लोगों के साथ मिलकर खुशियां मनानी चाहिए।

अंत में, हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम एक ऐसा समाज कैसे बना सकते हैं जहां हर कोई खुश और सुरक्षित महसूस करे। हमें मानवता के मूल्यों को बढ़ावा देना चाहिए, और एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। यही होली का असली संदेश है।

जगदीश लाल

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हिंदी पत्रकारिता से करीब चार दशकों तक सक्रिय जुड़ाव. संप्रति: लेखन, पठन-पाठन.

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