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एम्स गोरखपुर

एम्स ने पहली बार किया रोटेटिंग हिंज नी इम्प्लांट के साथ सफल घुटना प्रत्यारोपण, मरीज को मिली नई जिंदगी

एम्स ने पहली बार किया रोटेटिंग हिंज नी इम्प्लांट के साथ सफल घुटना प्रत्यारोपण, मरीज को मिली नई जिंदगी
गोरखपुर एम्स में पहली बार रोटेटिंग हिंज नी इम्प्लांट के साथ सफल घुटना प्रत्यारोपण। डॉ. अजय भारती और टीम ने जटिल केस का किया इलाज। यह उपलब्धि गोरखपुर के चिकित्सा क्षेत्र में मील का पत्थर।

गोरखपुर: गोरखपुर के चिकित्सा जगत में आज एक नया अध्याय जुड़ गया, जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), गोरखपुर के हड्डी रोग विभाग के डॉक्टरों ने ‘रोटेटिंग हिंज नी इम्प्लांट’ का उपयोग करते हुए एक जटिल ‘रिवीजन टोटल नी आर्थ्रोप्लास्टी’ (घुटना प्रत्यारोपण) का सफल ऑपरेशन किया। गोरखपुर में इस उन्नत तकनीक का यह पहला सफल प्रयोग है, जो उन मरीजों के लिए आशा की नई किरण लेकर आया है, जिनके पिछले घुटना प्रत्यारोपण ऑपरेशन विफल हो चुके होते हैं।

यह महत्वपूर्ण ऑपरेशन एम्स की कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल डॉ. विभा दत्ता के कुशल मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। एम्स के हड्डी रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. अजय भारती और उनकी समर्पित टीम (सहायक प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार, सीनियर रेजिडेंट डॉ. आशुतोष, डॉ. दिलीप, डॉ. दीपक) ने इस जटिल सर्जरी को अंजाम दिया। एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. संतोष शर्मा एवं सह-प्राध्यापक डॉ. गणेश निमजे भी इस टीम का अभिन्न हिस्सा रहे।

जटिल केस का सफल इलाज: डॉ. अजय भारती ने इस केस के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि महाराजगंज निवासी 54 वर्षीय एक महिला फरवरी 2025 में उनकी ओपीडी में आई थीं। उस समय मरीज के घुटने से मवाद बह रहा था और वे चलने में पूरी तरह असमर्थ थीं। दो साल पहले बाहरी अस्पताल में उनका घुटना प्रत्यारोपण हुआ था, जिसके बाद उसमें गंभीर संक्रमण (इन्फेक्शन) हो गया था।

डॉ. भारती ने बताया, “पहले से संक्रमित और ढीले हो चुके इम्प्लांट में मवाद बहने की वजह से उनका रिवीजन घुटना प्रत्यारोपण तुरंत नहीं किया जा सकता था। इसे ठीक करने के लिए फरवरी 2025 में पहला ऑपरेशन किया गया, जिसमें पुराना प्रत्यारोपित घुटना निकाला गया, घुटने की सफाई की गई और एंटीबायोटिक कोटेड स्पेसर इम्प्लांट लगाया गया।”

इसके बावजूद मवाद बंद न होने पर मई 2025 में मरीज के घुटने का पुनः ऑपरेशन किया गया, जिसमें एंटीबायोटिक सीमेंट और टाइटेनियम मैश से कस्टमाइज्ड स्पेसर बनाकर लगाया गया। इस प्रक्रिया के बाद जुलाई तक मरीज के घुटने से संक्रमण लगभग पूरी तरह खत्म हो गया और मवाद आना बंद हो गया। अंततः, 22 जुलाई को उनका ‘रिवीजन घुटना प्रत्यारोपण’ का सफल ऑपरेशन किया गया। यह ऑपरेशन ‘हिंज नी विद रोटेटिंग प्लेटफॉर्म इम्प्लांट’ के साथ किया गया है, जो गोरखपुर में पहली बार हुआ है। इस इंप्लांट के खर्च में मुख्यमंत्री राहत कोष से काफी मदद मिली।

क्या है हिंज नी इम्प्लांट? डॉ. अजय भारती ने ‘हिंज नी इम्प्लांट’ की कार्यप्रणाली को समझाते हुए कहा, “यह विशेष रूप से उन जटिल मामलों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जहां घुटने के जोड़ की अत्यधिक अस्थिरता होती है या जहां पिछले ऑपरेशन विफल हो चुके होते हैं। यह एक प्रकार का रिवीजन जॉइंट रिप्लेसमेंट है जो घुटने को अधिक स्थिरता प्रदान करता है, जिससे मरीज को बेहतर कार्यक्षमता और दर्द से राहत मिलती है। इसमें हड्डियों के खोखले हिस्सों में मेटालिक कोन या स्लीव लगाकर और अधिक स्थिरता प्रदान की जाती है।”

गोरखपुर के लिए मील का पत्थर: एम्स की कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल डॉ. विभा दत्ता ने डॉ. अजय भारती और उनकी टीम को इस उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए बधाई देते हुए कहा, “हमारा अस्पताल हमेशा अपने मरीजों को सर्वोत्तम चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। रोटेटिंग हिंज नी इम्प्लांट विथ मेटालिक कोन के साथ इस सफल टोटल नी आर्थ्रोप्लास्टी का ऑपरेशन हमारी इसी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।”

यह सफलता गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों के लिए एक मील का पत्थर है, क्योंकि अब मरीजों को अत्याधुनिक उपचार प्राप्त करने के लिए बड़े शहरों का रुख नहीं करना पड़ेगा।

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Priya Srivastava

Priya Srivastava

About Author

Priya Srivastava दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में परास्नातक हैं. गोगोरखपुर.कॉम के लिए इवेंट, एजुकेशन, कल्चर, रिलीजन जैसे टॉपिक कवर करती हैं. 'लिव ऐंड लेट अदर्स लिव' की फिलॉसफी में गहरा यकीन.

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