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Gorakhpur Church History: कैंट इलाके में दो सौ साल पहले पड़ी थी गोरखपुर शहर के पहले चर्च की नींव

Gorakhpur Church History: कैंट इलाके में दो सौ साल पहले पड़ी थी गोरखपुर शहर के पहले चर्च की नींव
Gorakhpur Church History: कैंट इलाके में दो सौ साल पहले पड़ी थी गोरखपुर शहर के पहले चर्च की नींव

Gorakhpur: गोरखपुर शहर में कई चर्च हैं जिनका समृद्ध इतिहास 200 वर्षों से भी अधिक पुराना है. प्रत्येक चर्च की अपनी एक अलग कहानी है. आज हम आपको शहर के चार सबसे पुराने चर्चों के इतिहास के बारे में बताएंगे. किस चर्च को कब और किसके लिए बनाया गया था यह जानना दिलचस्प होगा. आइए, शहर के सबसे पुराने चर्च, क्राइस्ट चर्च से लेकर सेंट एंड्रयूज चर्च तक की स्थापना के बारे में एक एक करके जानते हैं —

क्राइस्टचर्च: सबसे पुराना चर्च, सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी, सिविल सर्वेंट जा सकते थे

क्राइस्टचर्च: सबसे पुराना चर्च, सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी, सिविल सर्वेंट जा सकते थे

सेंट एंड्रयूज कॉलेज कैंपस में बना शहर का सबसे पुराना चर्च, क्राइस्ट चर्च, 200 वर्ष से भी अधिक पुराना है. 1820 में इस चर्च का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1 मार्च 1841 को कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने इसका पवित्रीकरण किया. इसकी खूबसूरत बनावट आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

चर्च के पुरोहित की जिम्मेदारी उस समय के कमिश्नर रॉबर्ट मार्टिन बर्ड को सौंपी गई थी. पहले यह एरिया कैंट के तौर पर जाना जाता था और 1947 तक इसमें सिर्फ अंग्रेजों के प्रशासनिक अधिकारी और सिविल सर्वेंट ही जाते थे, लेकिन आजादी के बाद से इसमें भारतीय ईसाइयों की भी एंट्री होने लगी.

प्रार्थना सभा हॉल की दीवारों पर लगे पत्थरों की खूबसूरती आज भी पहले जैसी बनी हुई है. बेदी के सामने और पीछे लगा बेल्जियम ग्लास 30 दिसंबर 1895 को कैंपियरगंज एस्टेट द्वारा इंग्लैंड से मंगवा कर चर्च को तोहफे में दिया गया था. इस चर्च में करीब दो सौ वर्षों से तिजोरी, लकड़ी के अलमारी, आल्टर एवं कुर्सी-मेज सुरक्षित हैं.

क्राइस्ट चर्च एकलौता ऐसा चर्च है, जिसका अपीयरेंस असल मायने में चर्च जैसा है. इसके गुंबद से लेकर अन्य सभी चीजें उसी शेप और साइज में बनाई गई हैं, जैसा कि इन्हें होना चाहिए. इसके निर्माण के बाद इसमें मरम्मत का काम तो हुआ है, लेकिन स्ट्रक्चर आज भी वैसा ही है, जैसा कि बनाते वक्त था.

सेंट जॉन्स चर्च: आमजन के लिए बना चर्च, झोपड़ी से लेकर सबसे बड़े चर्च तक का सफर

सेंट जॉन्स चर्च: आमजन के लिए बना चर्च, झोपड़ी से लेकर सबसे बड़े चर्च तक का सफर

शहर के मेडिकल कॉलेज रोड पर स्थित सेंट जॉन्स चर्च का इतिहास लगभग दो सौ साल पुराना है. इसकी शुरुआत 1823 में एक साधारण झोपड़ी से हुई, जिसे बाद में खपरैल का बनाया गया. लगभग दो दशक पहले, यहां एक दो मंजिला प्रार्थना हॉल और एक खूबसूरत चर्च का निर्माण किया गया, जो आज भी अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है.

चर्च की नींव 1823 में गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर मार्टिन बर्ड ने रखी थी, ताकि बशारतपुर और आसपास के क्षेत्रों में बसे ईसाई लोग प्रार्थना कर सकें. पादरी विल्किंस के बेतिया (बिहार) से बड़ी संख्या में ईसाई विश्वासियों के साथ गोरखपुर पहुंचने पर चर्च में प्रार्थना करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई. 1831 में, लॉर्ड विलियम ने चर्च को 1500 एकड़ जमीन प्रदान की, जिससे ईसाई समुदाय ने लगभग 600 एकड़ जमीन को साफ करके खेती शुरू की और एक गांव बसाया. धीरे-धीरे आबादी बढ़ी और यह क्षेत्र बशारतपुर के नाम से जाना जाने लगा.

1835 में, ईसाई समुदाय ने यहां सेंट जॉन्स चर्च का निर्माण कराया, जो 1857 की क्रांति में ध्वस्त हो गया. इसके बाद इसका पुनर्निर्माण किया गया और अब यह पूरी तरह से बदल चुका है. आज यह शहर का सबसे बड़ा चर्च है जिसके सदस्यों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है.

सेंट जोसेफ चर्च: महागिरजाघर जिसे उसकी समाजसेवा के लिए जाना गया

सेंट जोसेफ कैथ्रेडल चर्च: महागिरजाघर जिसे उसकी समाजसेवा के लिए जाना गया

गोरखपुर की सिविल लाइंस में स्थित सेंट जोसेफ कैथ्रेडल चर्च शहर की एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर है. इसकी स्थापना वर्ष 1860 में हुई थी. सेंट जोसेफ कैथ्रेडल चर्च गोरखपुर के सबसे पुराने चर्चों में से एक है. इसका लाल रंग होने के कारण इसे पहले “लाल गिरजाघर” के नाम से भी जाना जाता था.

सेंट जोसेफ कैथ्रेडल चर्च को शहर में “महा गिरजाघर” के नाम से भी जाना जाता है. यह सिर्फ धार्मिक गतिविधियों का केंद्र ही नहीं, बल्कि समाज सेवा के लिए भी जाना जाता है. चर्च की ओर से जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा और अन्य सामाजिक कार्यों को बढ़ावा दिया जाता है.

चर्च की एक खास बात इसके तीन विशाल घंटे हैं, जिन्हें 1896 में लंदन से मंगवाया गया था. लगभग 50 किलोग्राम वजनी इन घंटों को मियर्स एंड स्टेन बैंक ने लंदन से भेजा था. इन घंटों की आवाज आज भी चर्च की पहचान का हिस्सा है और शहर के लोगों के लिए एक सुखद अनुभव है.

सेंट एंड्रयूज चर्च : 1898 में रेलवे अधिकारियों के लिए बनाया गया था

सेंट एंड्रयूज चर्च : 1898 में रेलवे अधिकारियों के लिए बनाया गया था

कौवा बाग रेलवे कॉलोनी में स्थित सेंट एंड्रयूज चर्च का निर्माण सन 1898 में बंगाल और नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे (बीएनडब्लू रेलवे) कंपनी द्वारा किया गया था. यह चर्च ना केवल श्रद्धा का केंद्र है बल्कि बेहतरीन वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना भी है.

शुरुआत में यह चर्च विशेष रूप से रेलवे के अधिकारियों के लिए बनाया गया था, और रेलवे कॉलोनी तथा आसपास के अधिकारी ही यहां आते थे. समय के साथ, आबादी बढ़ने के साथ-साथ, आम लोग भी यहां आने लगे.

सेंट एंड्रयूज चर्च शहर का इकलौता चर्च है जहां आज भी अंग्रेजी में प्रार्थना होती है. हालांकि, 15 साल पहले तक यहां केवल अंग्रेजी में ही प्रार्थना होती थी, लेकिन बाद में हिंदी में भी प्रार्थना शुरू की गई. शहर के बाकी चर्चों में हिंदी में ही प्रार्थना होती है.

गो गोरखपुर ब्यूरो

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