GO GORAKHPUR: गलत साझेदारी से कोई धंधा किस तरह चौपट हो सकता है, इसका जीता जागता उदाहरण बन गया गोरखपुर का नीर निकुंज पार्क. करीब अठारह साल पहले जब पूर्वांचल के पहले वाटर पार्क की शुरुआत हुई तो नजारा देखने लायक होता था. गोरखपुर विकास प्राधिकरण द्वारा आवंटित जमीन पर चालू हुए अनोखे वाटर पार्क में पहले तीन साझेदार थे. बाद में साझेदारों की संख्या बढ़कर आठ हो गई. लेकिन इन सबके बीच 2019 तक वाटर पार्क का अस्तित्व बना रहा. जीडीए की भूखंड आवंटन की शर्तों का उल्लंघन हुआ तो इस पार्क की उलटी गिनती शुरू हो गई.
अक्टूबर 2005 में जीडीए से हुआ था करार
पार्क रोड स्थित मेसर्स केआर एम्यूजमेंट एंड रिसॉर्ट्स के रोहित अग्रवाल ने मिस्टर कुक रेस्टोरेंट के जरिये ने 28 अक्टूबर 2005 को जीडीए से वाटर पार्क की स्थापना के लिए करार किया था. करार से जुड़ा पूरक करार 18 अक्टूबर 2007 में किया गया था. वाटर पार्क के लिए जीडीए ने 12 एकड़ जमीन आवंटित की थी. इसका नाम नीर निकुंज वाटर पार्क रखा गया था. बाद में चंपा देवी पार्क के पास बने इस वाटर पार्क के बड़े हिस्से में मैरेज हाल का भी संचालन होने लगा था.
शर्तों का उल्लंघन, अवैध निर्माण की भरमार
वाटर पार्क की जमीन पर मैरेज हाल संचालित होने की शिकायत के बाद जीडीए ने वर्ष 2019 में इसे सील कर दिया था. आरोप था कि संचालकों ने सील तोड़कर कर मैरेज हाल संचालित किया. इस मामले में आवंटी कोर्ट भी गए थे लेकिन राहत नहीं मिली थी. शर्तों का उल्लंघन करते हुए पार्क में 16 जगह अवैध निर्माण कराए गए पांच मैरेज हाल भी बना लिए गए. करार के मुताबिक न तो वातावरण पार्क बना और न ही पैदल पथ. चारों तरफ चहारदीवारी का निर्माण कराकर गार्ड की तैनाती कर दी गई. इसके कारण टहलना तो दूर, लोग पार्क के अंदर जा ही नहीं पाते थे.
मूल आवंटी हुआ बेदखल, बढ़ते गए नये पार्टनर
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जब वाटर पार्क के लिए करार हुआ था तब रोहित अग्रवाल का 30 प्रतिशत, नूतन अग्रवाल का 30 प्रतिशत और भूपेंद्र विक्रम सिंह का 40 प्रतिशत हिस्सा था. बाद में रोहित अग्रवाल का हिस्सा सिर्फ दो प्रतिशत रह गया. इसमें अर्जुन वालानी, दिनेश कुमार वालानी, आरती अग्रवाल, दीपक अग्रवाल, श्याम बिहारी अग्रवाल, अनुज अग्रवाल और अभिषेक अग्रवाल का बड़ा हिस्सा हो गया. रोहित अग्रवाल ने 25 अप्रैल 2019 को जीडीए में शिकायत की थी कि पार्क में उनका अधिकार समाप्त कर दिया गया है. बाद में पार्टनर बढ़ने पर जीडीए ने शर्तों का उल्लंघन माना. तब कहा गया था कि वर्तमान साझेदारों ने मूल आवंटी के अस्तित्व को ही खत्म कर दिया और पार्क का मूल स्वरूप बदलकर इसे निजी लाभ कमाने के लिए बरात घर बना दिया.