Category: बात-बेबात

बात चलेगी…बात चुभेगी…कुछ अंदरखाने की…कुछ बाहरखाने की…अंदाज एकदम देसी…और भाषा होगी भदेस

दीपिका की बेटी दुआ के चर्चे

दीपिका की बेटी दुआ के चर्चे

Deepika ki beti: रणवीर—दीपिका मशहूर फिल्मी सितारों की जोड़ी को कौन नहीं जानता। ये पावर कपल 8 सितंबर को माता-पिता बने हैं। फिल्मी सितारों के घर एक नन्ही परी आई…

बतकही-गो गोरखपुर

जब तक हम न पुकारें…उधर से आवाज़ नहीं आती

जेनरेशन गैप की असली वजह तकनीकी विकास और बाजारवाद है न कि संस्कार, कला और संस्कृति. ये तो इसे संरक्षित करने की पक्षधर हैं.

चुपचाप, खुद ही अतिक्रमण की हदें समेटना क्या कहता है…

चुपचाप, खुद ही अतिक्रमण की हदें समेटना क्या कहता है…

यह तस्वीर अपने गलत कार्यों की मौन स्वीकृति की गवाह है. कानून व्यवस्था को ठेंगे पर रखकर पिछले दिनों जिन सड़कों पर तांडव हुआ, वहां अब अपनी सीमा खुद ही…

कॉलम - ठोंक बजा के

बापू सेहत के लिए तू तो हानीकारक है…

शहर के क्लीनिक में हाल में ही घटी एक घटना अब सियासी उबाल ले रही है. सिपाही के पक्ष में लोगों का एक-एक करके आते जाना सिर्फ संयोग भर नहीं…

कॉलम - ठोंक बजा के

बाउंसर रखकर ​मरीज़ की पीड़ा का गला मत घोटिये!

चिकित्सा कर्म, सेवा नहीं है. इसे 'सेवा' के नजरिये से देखे जाने की समझ अब पुरानी और व्यर्थ हो चुकी लगती है. चिकित्सक की फीस चुकाने के साथ ही, डॉक्टर…

बतकही-गो गोरखपुर

बाजार निगल रहा है परिवार की नज़दीकियां

Gorakhpur: परिवार टूट रहे हैं. संबंध बिखर रहे हैं. पति-पत्नी, भाई-भाई, भाई-बहन, पिता-पुत्र के बीच की आत्मीयता अब पहले जैसी नहीं रही.

बतकही-गो गोरखपुर

सियासी लड्डू, मिलावट और जांच

बतकही: बाबू साहब ठहाका लगाते हैं. प्रति प्रश्न करते हैं. भला इतनी सस्ती दर के घी से कौन सा लड्डू बनेगा. आखिर मंदिर प्रशासन को इतने सस्ते दर के घी…

बतकही-गो गोरखपुर

खुद ही को जलाकर, खुद को रोशन किया हमने…

बतकही: किसी परिवार का लड़का पढ़ लिखकर बीए, एमए तक पहुंचा, परिवार में दस बीघे खेती है. वरदेखुआ आ धमकते थे. रिश्ता तय हो जाता था. मध्यस्थता करने वाले रिश्तेदारों…

बतकही-गो गोरखपुर

…क्योंकि प्रेम है भक्ति की पहली सीढ़ी

गो गोरखपुर बतकही | 'पुनर्नवा' चौथी सदी के आसपास के भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें उठाए गए प्रश्न आज भी प्रासंगिक हैं.

बतकही-गो गोरखपुर

…जरा तुम दाम तो बोलो यहां ईमान बिकते हैं

दुबे जी एक तरफ सिंह साहब दूसरी तरफ। दुबे जी तर्क कर रहे थे। अच्छे पढ़े-लिखे लड़के अब प्राइवेट सेक्टर में जा रहे हैं। वहां उनके ज्ञान और कौशल का…

बतकही-गो गोरखपुर

मिरी मजबूरियां क्या पूछते हो…

बतकही | निजी चिकित्सा सेवाओं का संजाल शहर से लेकर गांवों तक फैला है। अब तो इनके दलाल भी हर की मौजूद हैं। कहीं-कहीं तो सब कुछ तंत्र की जानकारी…

गो गोरखपुर बतकही

कमजोर नागरिक धर्म

गो गोरखपुर बतकही | सोचें! शैशव काल से बचपन के दिन. पहला कदम. पहला शब्द. मां की उंगलियां पकड़े आगे बढ़ने की अभिलाष. भाषा के संस्कार. सारी क्रियाओं में से…

गो गोरखपुर बतकही

शराब आत्मा और शरीर दोनों को मारती है!

बतकही: महफिलों में गए तो खुद की साथ ले जाते। किसी की भावनाएं आहत न हों, इसका भरपूर ख्याल रखते। कभी किसी से उम्मीद नहीं की। न छिपाते, न बताते,…

गो गोरखपुर बतकही

फेर में पड़ गए ध्यानी जी!

ध्यानी जी धार्मिक यात्रा पर थे. ठगी के शिकार हो गए. बात बहुत छोटी है लेकिन है पिंच करने वाली. ध्यानी जी आस्थावादी हैं. उन्हें लगता है कि धर्म से…

गो गोरखपुर बतकही

विकास, मंगरू मास्साब और सुबह की चाय!

बतकही: मंगरू मास्साब बहुत खुश हैं. आज सुबह की चाय पर जब बहुत कुरेदा तो पता चला कि उनकी खुशी की जड़ में "विकास" बैठा हुआ है. यह वही विकास…

ठोंक बजा के...

गाड़ी वाला नहीं आया, घर में कचरा संभाल…

सफाई और स्वच्छता में इंदौर नगर निगम से रेस लगाने वाला गोरखपुर नगर निगम अपनी पीठ भले ही थपथपा ले, लेकिन हकीकत कुछ और ही है.

गो गोरखपुर बतकही

उम्मीदों के बीच जिंदगी…

कौवाबाग रेलवे कॉलोनी से होकर रेलवे स्टेशन पहुंचना हो तो सुखद लगता है. सड़क के दोनों किनारे हरे-भरे वृक्ष मानो साधना में लीन. आगे फिर स्वाद......