NATIONAL: मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है. इस बीच कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिसने पूरे देश को दहला दिया है. इस वीडियो में कुकी समुदाय की दो महिलाओं को कपड़े उतारकर सड़क पर घुमाते हुए दिखाया जा रहा है. ये वीडियो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी निंदा की. उन्होंने कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को स्वतः संज्ञान लिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है. ऐसे में आज हम आपको मणिपुर में चल रही हिंसा की पूरी कहानी बताएंगे. कब और कैसे इसकी शुरूआत हुई? अब तक क्या-क्या हुआ? मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा?
मणिपुर के ताजा हालात को समझने के लिए हमें मणिपुर की भौगोलिक स्थिति जाननी होगी. इसके साथ ही हमें थोड़ा पीछे चलना चाहिए. दरअसल, मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है. ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है. बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है. इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है. ये ज्यादातर हिंदू होते हैं. मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है. आंकड़े देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं. वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं. इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं. ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं. इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है. भारतीय संविधान के आर्टिकल के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नही मिलतीं. लैंड रिफॉर्म एक्ट की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता. जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है. इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं.
हिंसा की शुरूआत कब हुई
मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई. ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब किलोमीटर 63 की दूरी पर है. इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं. गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइवल लीडर्स फोरम ने चुराबंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था. देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया. उसी रात तुझ्योग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया. 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे. इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने आदिवासी एकता मार्च निकाला. ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था. यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई. आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए. लडाई के तीन पक्ष हो गए. एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग. देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा.
चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी. पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी. सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया. अब तक इस हिंसा के चलते 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं.
हिंसा की वजहें मैतेई समुदाय के एसटी दर्जे का विरोध
मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है. मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा. इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को, 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था. इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है. कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया. अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच केस की सुनवाई कर रही है.
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