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‘यह दौर मीडिया के भ्रम जाल को तोड़ने वाला’

‘खबरों का भ्रम जाल: पक्ष, विपक्ष, निष्पक्ष’ पर चर्चा में शामिल हुए नामी पत्रकार

गोरखपुर लिट फेस्ट के दूसरे दिन मीडिया से जुड़ी परिचर्चा में उपस्थित प्रिंट और इले​क्ट्रॉनिक मीडिया के दिग्गज
गोरखपुर लिट फेस्ट के दूसरे दिन मीडिया से जुड़ी परिचर्चा में उपस्थित प्रिंट
और इले​क्ट्रॉनिक मीडिया के दिग्गज.       फोटो सौजन्य: गोरखपुर लिट फेस्ट

GO GORAKHPUR: गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल शब्द संवाद के दूसरे दिन “खबरों का भ्रम जाल: पक्ष, विपक्ष, निष्पक्ष” विषयक मीडिया विमर्श के सत्र में मीडिया की विभिन्न हस्तियां राणा यशवंत, अशोक वानखेडे, सुशांत सिन्हा ने उक्त विषय पर अपने विचार रखे तथा अकु श्रीवास्तव ने बीज वक्तव्य दिया.

मीडिया कभी निष्पक्ष नहीं रहा: सुशांत सिन्हा

मीडिया कभी निष्पक्ष नहीं रहा. कोई माने ना माने, बताए ना बताए लेकिन मीडिया और सत्ता का गठजोड़ हमेशा रहा है. हां, यह अलग बात है कि पहले एकतरफा चीजें रखी जाती थीं लेकिन आज उसका एक दूसरा पक्ष भी रखने वाले लोग मौजूद हैं. मीडिया के अब कई माध्यम हैं और उन के माध्यम से चीजें और बातें रखी जा रही हैं. मीडिया का एक पक्ष होता है कि आप सत्य के साथ खड़े हों और वह सत्य किसी धर्म, किसी जाति, किसी सरकार अथवा किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होता. यह दौर बहुत कुछ बदलने वाला दौर है क्योंकि लोगों को अब सब कुछ दिखने लगा है. स्पष्ट नजर आने लगा है. यह मीडिया के भ्रम जाल को तोड़ने वाला दौर है. वास्तव में सबने एक हिस्सा चुना है और जो उनको सही लगता है उसी की बात करते हैं यही मीडिया का जाल है. कई मीडिया संस्थान जो मात्र एक पक्षीय बात करते हैं उनके भ्रम जाल से निकलने की कोशिश करनी चाहिए. आंकड़ों तथा फैक्ट और फिगर्स को ध्यान में रखकर ही लोगों को तय करना चाहिए कि सच क्या है. मीडिया जो नैरेटिव करता है उसके पीछे यदि कोई साजिश होती है तो उसे समझ कर, उससे बचकर सत्य को महसूस करना दर्शकों तथा पाठकों की भी जिम्मेदारी है.

तमाम कलुषित अध्यायों को पहले भी मीडिया ने ढका है: अशोक वानखेड़े

निष्पक्ष पत्रकार को लोग आज महत्व देते हैं और उसका कारण यह है कि लोग अब मानसिक और वैचारिक रूप से पहले के मुकाबले ज्यादा जागरूक हैं. आज के मीडिया को किसी सरकार का पक्षधर बताने वाला समूह यह भूल जाता है कि कभी तमाम कलुषित अध्यायों को पहले भी मीडिया ने ढका है. सरकार का काम है घोषणा पत्र में किए गए वादों को निभाना. मीडिया का काम है उसको उद्घाटित करना और जनता के प्रश्नों को सरकारों अथवा जिम्मेदार विपक्ष तक उठाना. पत्र या पत्रकार यदि पक्षधरता के ऑप्शन को चुनता है तो वह इस क्षेत्र में रहने का अधिकारी ही नहीं है. कोई भी चैनल या पत्रकार मात्र कमरे में बैठकर गरीब अथवा किसान अथवा किसी भी पक्ष को जान या समझ नहीं सकता है.

सोशल मीडिया ने मीडिया विमर्श को प्रभावित किया है: राणा यशवंत

सोशल मीडिया ने मीडिया विमर्श को प्रभावित किया है. सत्ता पर प्रश्न शाश्वत है लेकिन मीडिया संस्थानों को विवेक के साथ यह सोचना चाहिए कि किसी भी समाज की व्यवस्थाएं होती हैं. महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को हम सिर्फ सत्ता से जोड़ते हैं लेकिन इसके पीछे बहुत कारण हैं. फैक्ट के साथ कॉन्टेक्स्ट को अलग नहीं किया जा सकता है. हिंदुस्तान विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर काम कर रहा है और इस को उद्घाटित करने का काम भी मीडिया की जिम्मेदारी है. किसी का विरोध अथवा किसी का समर्थन करने से पहले मीडिया को यह सोचना चाहिए कि उसकी अपनी जिम्मेदारी क्या है, वह पक्षधरता है अथवा निष्पक्षता है.

समाज के साथ-साथ मीडिया भी बदला है: अकु श्रीवास्तव

नई पीढ़ी के तमाम पत्रकारों ने बहुत ही शानदार काम किया है. चुनौती देना मुश्किल काम है और कई वर्तमान पत्रकारों ने लीक से परे जाकर संस्थानों को अथवा सरकारों को चुनौती देने का भी काम किया है. कई बार हम पर आरोप लगता है कि हम खबर छोड़ देते हैं. मीडिया में बदलाव का दौर है और समाज के साथ-साथ मीडिया भी बदला है. सोशल मीडिया तो भयंकर बदला है. ऐसे बदलाव में मीडिया का पक्ष और विपक्ष में होना तथा निष्पक्ष ना होना एक आम बात है. यहां तक की कई ऐसी राज्य सरकारें भी हैं जो अपने विरोध में लिखने पर पत्रकारों को बैन तक कर देती हैं. पत्रकारों को निडर रहते हुए इन सब समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.

कार्यक्रम का संचालन आशीष श्रीवास्तव ने किया.

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