बतकही

कुंभ स्नान: आस्था और मोक्ष की तलाश

बतकही-गो गोरखपुर

Kumbh Mela Prayagraj Faith and Rituals: “प्रयागराज महाकुंभ -2025” 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी को समाप्त होगा. क्या आप या आपके परिजन  इस  कुंभ स्नान में शामिल होंगे? ज्ञानीजन कहते हैं कि कुंभ में स्नान  अत्यंत फलदायी  है. इसके तीन प्रमुख  निहितार्थ हैं – पापों का नाश, पितृ ऋण से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति.

पाप क्या है? तुलसीदास जी कहते हैं –

तुलसी काया खेत है, मनसा भयौ किसान,
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान.

कुंभ मेला क्यों और कहाँ लगता है?

यद्यपि वेदों में कुंभ मेले का कोई विशेष उल्लेख नहीं है,  लेकिन एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा देवताओं और असुरों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर हुए युद्ध की है.  इस युद्ध में  अमृत कलश  छलक गया और अमृत की बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं. इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.

मान्यता के अनुसार, देवताओं का एक दिन पृथ्वी के 12 वर्ष के बराबर होता है, इसलिए कुंभ का आयोजन भी हर बारहवें वर्ष किया जाता है.

कुंभ नगरी प्रयागराज

सरकार ने इस  महाकुंभ की  भव्य तैयारी की है. 6382 करोड़ रुपये  खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें  आधारभूत सुविधाएं, भीड़ प्रबंधन, स्वच्छता, यातायात, स्वास्थ्य, सुरक्षा और धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों की व्यवस्था शामिल है. सरकार का अनुमान है कि 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु संगम में स्नान करने आएंगे.

बदलते समाज का कुंभ

मान्यताएं अपनी जगह हैं, लेकिन समाज बदल रहा है. 1954 के महाकुंभ और आज के महाकुंभ में श्रद्धालुओं की  स्थिति में काफी अंतर आ गया है.

उदाहरण के लिए,  एक उच्च  सवर्ण  परिवार, जिसमें  कुंभ के प्रति गहरी आस्था है,  पश्चिम बंगाल से  फ्लाइट द्वारा गोरखपुर  और फिर सड़क मार्ग से प्रयागराज पहुंच रहा है. उन्होंने  झूंसी में होटल बुक किया है और स्थानीय यात्रा के लिए गाड़ी भी बुक की है. वे भीड़ से बचते हुए संगम स्नान करेंगे,  पापों से मुक्ति और पितृ ऋण से उऋण  होने की कामना करेंगे.

कवि कैलाश गौतम ने लगभग 70 साल पहले कुंभ का जो  चित्रण किया था, वह  आज के कुंभ से काफी अलग है. उनकी कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखा,
धरम में, करम में, सनल गाँव देखा
अगल में, बगल में सगल गाँव देखा,
अमौसा नहाये चलल गाँव देखा….

केहू शाल, स्वेटर, दुशाला मोलावे
केहू बस अटैची के ताला मोलावे
केहू चायदानी पियाला मोलावे
सेठुउरा के केहू मसाला मोलावे….

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जगदीश लाल

जगदीश लाल

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हिंदी पत्रकारिता से करीब चार दशकों तक सक्रिय जुड़ाव. संप्रति: लेखन, पठन-पाठन.

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