आस्था...

आस्था...

गोरखपुर शहर अपनी सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विश्वविख्यात है. यहां के खिचड़ी मेले की परंपरा युगों पुरानी है.

गो गोरखपुर

मान्यता...

मान्यता...

त्रेता युग में, गुरु गोरखनाथ कांगड़ा के ज्वाला देवी मंदिर गए. वहां देवी ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया.

भिक्षा...

भिक्षा...

तामसी भोजन देखकर बाबा गोरखनाथ बोले, मैं तो भिक्षाटन से मिले चावल-दाल को ही ग्रहण करता हूं.

संस्कृति...

संस्कृति...

देवी ने कहा कि मैं चावल-दाल पकाने के लिए पानी गरम करती हूं. आप भिक्षाटन कर चावल-दाल लाएं.

साधना...

साधना...

गोरखनाथ भिक्षाटन करते हिमालय की तराई में स्थित गोरखपुर आ गए और यहीं साधना में लीन हो गए.

श्रद्धा...

श्रद्धा...

मकर संक्रांति पर, एक योगी को ध्यानरत देखकर लोग भिक्षापात्र में चावल-दाल डालने लगे, पर वह नहीं भरा.

परंपरा...

परंपरा...

सिद्ध योगी के अक्षयपात्र को देखकर लोग अभिभूत हो गए और इसके साथ ही शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा.

इतिहास...

इतिहास...

खिचड़ी मेले पर यहां श्रद्धालु देश विदेश से आते हैं. मेला जनवरी से शुरू होकर शिवरात्र तक चलता रहता है.

रिवाज...

रिवाज...

खिचड़ी मेला इस बार और भी खास होगा, क्योंकि श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं और सुरक्षा के इंतज़ाम हाईटेक हैं.

धरोहर...

धरोहर...

मंदिर प्रांगण में एक स्थल पर नाथपंथ के सिद्ध योगियों की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए लगाई गई हैं.

उपासना...

उपासना...

गोरखनाथ मंदिर नाथपंथ साधना का प्राचीनतम स्थल है. गुरु गोरखनाथ नेपाल राजपरिवार के आराध्य देव हैं.

विश्वास...

विश्वास...

महाभारत काल में भीम, बाबा गोरखनाथ को आमंत्रण देने आए थे. यहां भीम की शयन मुद्रा में विशाल प्रतिमा है.

अखंड...

अखंड...

गोरखनाथ मंदिर प्रांगण में मुख्य मंदिर के करीब एक अखंड ज्योति है, जो त्रेता युग से ही जलती आ रही है.