GOGORAKHPUR: जंगल से भटककर एक नर हिरण गांव जा पहुंचा. बात बुधवार को दोपहर बाद की है. सूबा बाजार से सटा जंगल का हिस्सा है. जंगल के इसी हिस्से से तकरीबन तीन बजे एक वयस्क नर हिरण भटक कर जंगल से सटे खाले टोला पहुंच गया. हिरण मोहल्ले की गलियों में दौड़ लगाने लगा. समझा जाता है कि वह मैदानी हिस्से में पहुंचने के बाद दहशत में आ गया और भागने लगा. इस क्रम में उसे हल्की चोट आ गई.
आबादी में पहुंचे हिरण को देख ग्रामीण इकट्ठा हो गए. मिलकर पकड़ लिया तथा वन विभाग को सूचना दी. सूचना पाकर पहुंचे विभागीय लोगों ने उसे अपने सुपुर्दगी में ले लिया. पहले वन कर्मियों ने उसे जंगल में छोड़ना चाहा लेकिन वह जंगल में जाने की बजाय वापस गांव की तरफ लौट आया. इस क्रम में वह एक मैरिज लान के पास जाकर बैठ गया.
सुबा बीट के एक वन दरोगा ने हिरण के स्वभाव के बारे में बताया कि वे अक्सर गेहूँ की हरी फसल के लालच में भटक कर गांव की तरफ चले आते हैं. उन्होंने बताया कि भटका हिरण चीतल प्रजाति का है. जंगल में काफी संख्या में चीतल मौजूद हैं. उन्होंने इस वयस्क की उम्र 3 से 4 साल के बीच का अनुमान व्यक्त किया. देर शाम अंधेरा होने पर टीम ने उसे जंगल में छोड़ दिया.
जंगलों का मूल्यवान आभूषण
चीतल भारतीय जंगलों का एक मूल्यवान आभूषण है.वह उनकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है.चीतल की त्वचा का रंग हल्का लाल-भूरे रंग का होता है और उसमें सफ़ेद धब्बे होते हैं. पेट और अंदरुनी टांगों का रंग सफ़ेद होता है. चीतल की सींग अमूमन तीन शाखाओं वाली होती है, यह ७५ से.मी. तक लंबी हो सकती है.इन्हें यह हर साल गिरा देता है.
चीतल भारतीय जंगलों का एक मूल्यवान आभूषण है.वह उनकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है.चीतल की त्वचा का रंग हल्का लाल-भूरे रंग का होता है और उसमें सफ़ेद धब्बे होते हैं. पेट और अंदरुनी टांगों का रंग सफ़ेद होता है. चीतल की सींग अमूमन तीन शाखाओं वाली होती है, यह ७५ से.मी. तक लंबी हो सकती है.इन्हें यह हर साल गिरा देता है.
कद काठी
अपने निकटतम रिशतेदार पाढ़ा की तुलना में चीतल की कद-काठी दौड़ने के लिए अधिक विकसित है. इसके शरीर की बनावट अधिक विकसित होती है. इसके सींग की शाखाएँ क्रमशः छोटी होती चलती हैं तथा खोपड़ी के कर्णछिद्र छोटे होते हैं. इसका क़द कंधे तक ९० से.मी. होता है और वज़न ८५ कि. तक हो सकता है.नर मादा से थोड़ा बड़ा होता है. इसका जीवनकाल ८-१४ साल का होता है.
अपने निकटतम रिशतेदार पाढ़ा की तुलना में चीतल की कद-काठी दौड़ने के लिए अधिक विकसित है. इसके शरीर की बनावट अधिक विकसित होती है. इसके सींग की शाखाएँ क्रमशः छोटी होती चलती हैं तथा खोपड़ी के कर्णछिद्र छोटे होते हैं. इसका क़द कंधे तक ९० से.मी. होता है और वज़न ८५ कि. तक हो सकता है.नर मादा से थोड़ा बड़ा होता है. इसका जीवनकाल ८-१४ साल का होता है.
शृंगाभ की खूबसूरती
इसका शृंगाभ इसकी खूबसूरती का एक दूसरा पहलू है.यह दो-तीन या इससे भी अधिक शाखाओं में बंटे होते हैं. शृंगाभ लालिमा लिए और औसतन 90 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. अधिकांश नर चीतल इन शृंगाभों को अगस्त में गिरा देते हैं. चौमासा समाप्त होने पर नए शृंगाभ उगने लगते हैं. ये दिसंबर तक मखमली और मुलायम रहते हैं और मार्च तक सूखकर सख्त हो जाते हैं. चीतल का प्रजनन काल सामान्यत: अप्रैल-मई में होता है. इस समय नर शृंगाभों को उलझाकर आपस में लड़ पड़ते हैं और मादाओं को अपने कब्जे में रखने की कोशिश करते हैं. ये लड़ाइयां कई बार एक प्रतिद्वंद्वी की मौत पर आ रुकती हैं जब दूसरे के शृंगाभ उसकी छाती को भेदकर उसके फेफड़ों को फाड़ देते हैं.
इसका शृंगाभ इसकी खूबसूरती का एक दूसरा पहलू है.यह दो-तीन या इससे भी अधिक शाखाओं में बंटे होते हैं. शृंगाभ लालिमा लिए और औसतन 90 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. अधिकांश नर चीतल इन शृंगाभों को अगस्त में गिरा देते हैं. चौमासा समाप्त होने पर नए शृंगाभ उगने लगते हैं. ये दिसंबर तक मखमली और मुलायम रहते हैं और मार्च तक सूखकर सख्त हो जाते हैं. चीतल का प्रजनन काल सामान्यत: अप्रैल-मई में होता है. इस समय नर शृंगाभों को उलझाकर आपस में लड़ पड़ते हैं और मादाओं को अपने कब्जे में रखने की कोशिश करते हैं. ये लड़ाइयां कई बार एक प्रतिद्वंद्वी की मौत पर आ रुकती हैं जब दूसरे के शृंगाभ उसकी छाती को भेदकर उसके फेफड़ों को फाड़ देते हैं.
जन्म
मादाएं छह महीने के गर्भधारण के बाद एक या दो छौनों को जन्म देती हैं.
मादाएं छह महीने के गर्भधारण के बाद एक या दो छौनों को जन्म देती हैं.
ऐसे बचते हैं शत्रुओं से
यद्यपि चीतल के बाघ, तेंदुए और ढोल जैसे खौफनाक शत्रु हैं, पर वह इनकी मौजूदगी से बेफिक्र होकर अपनी जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाने में मगन रहते हैं. कई बार नदियों और सोतों में रहनेवाले मगर भी इन्हें निगल जाते हैं। छौनों को अजगर, लकड़बग्घे और गीदड मार देते हैं.
यद्यपि चीतल के बाघ, तेंदुए और ढोल जैसे खौफनाक शत्रु हैं, पर वह इनकी मौजूदगी से बेफिक्र होकर अपनी जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाने में मगन रहते हैं. कई बार नदियों और सोतों में रहनेवाले मगर भी इन्हें निगल जाते हैं। छौनों को अजगर, लकड़बग्घे और गीदड मार देते हैं.
इन शत्रुओं से बचने के लिए प्रकृति ने चीतल के छौनों को एक अद्भुत क्षमता दी है. इनकी गंध बिलकुल नहीं होती और किसी झुरमुट में या घास में पड़े छौने को परभक्षियों को सूंघ पाना अत्यंत कठिन होता है. चीतल अन्य हिरणों से कम निशाचर होते हैं और सुबह देर तक और शाम को चरते देखे जाते हैं. चीतलों को अन्य प्राणियों की संगत बहुत प्रिय है. वे पालतू ढोरों, बारहसिंघों, नीलगायों, सूअरों, कृष्णसारों और लंगूरों के साथ विचरते देखे जाते हैं.
लंगूरों के साथ खास रिश्ता
जहां लंगूरों का झुंड पेड़ों पर आहार तलाश रहा हो, वहां नीचे जमीन पर चीतल भी अवश्य मिलेंगे. ये वहां लंगूरों द्वारा गिराए गए पत्ते, फूल आदि को खाने इकट्ठा होते हैं. लंगूरों की उपस्थिति से चीतलों को सुरक्षा का एहसास भी होता है. लंगूरों की दृष्टि पैनी होती है और अपने ऊंचे आसनों से वे शत्रु को दूर से ही देखकर चीतलों को चेता देते हैं.
इस सुंदर हिरण ने साहित्य और कला में भी स्थान पाया है. कहा जाता है कि सीता इसी हिरण पर मोहित हो गई थीं और राम को उसे पकड़ लाने को भेजा था. चित्रकला में भी चीतल को भरपूर सम्मान मिला है.
जहां लंगूरों का झुंड पेड़ों पर आहार तलाश रहा हो, वहां नीचे जमीन पर चीतल भी अवश्य मिलेंगे. ये वहां लंगूरों द्वारा गिराए गए पत्ते, फूल आदि को खाने इकट्ठा होते हैं. लंगूरों की उपस्थिति से चीतलों को सुरक्षा का एहसास भी होता है. लंगूरों की दृष्टि पैनी होती है और अपने ऊंचे आसनों से वे शत्रु को दूर से ही देखकर चीतलों को चेता देते हैं.
इस सुंदर हिरण ने साहित्य और कला में भी स्थान पाया है. कहा जाता है कि सीता इसी हिरण पर मोहित हो गई थीं और राम को उसे पकड़ लाने को भेजा था. चित्रकला में भी चीतल को भरपूर सम्मान मिला है.
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