कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. चारु शीला सिंह की प्रस्तुति “मेरे टेबल पे रखी सब किताबों में वो रहता है, मुझे छुप कर नहीं खुलकर पढ़ो ये मुझसे कहता है..” से हुई।
इसके बाद रामायण धर द्विवेदी द्वारा “प्रेम का बीज जब एक अंकुर बने, मुश्किलों का हल तुम्हे मिल जाएगा, हार जाने पर निराशा घोर होती है, जुगनु जैसी जलती बुझती छोटी-छोटी आशाएं, पथ के पाहन चुन-चुन कर सागर पर सेतु बना डालो” जैसी प्रस्तुतियों ने उपस्थित काव्यप्रेमियों को काव्य रस का रसपान कराया।
वरिष्ठ कवि राजेश राज जी ने “सबकी अपनी अपनी जीवन शैली होती है, पांव बढ़ाया था कूच की खातिर ज्यों ही, जाने कितनी राम कथाएं जग में बिना कही, सबको तुलसी मिल जाए होता सौभाग्य नही, गिरधर आया आज तुम्हारे सूना आंगन देख रहा हूं” जैसी रचनाओं से सबको भावों से सम्पृक्त कर दिया।
तत्पश्चात प्रसिद्ध कवि दिनेश बावरा ने “जरा सा साथ दो तो दुनिया की कहानी कह दूं, सूरज तेजी से ढल रहा है– जमाना बहुत बदल रहा है, अपने हौसले को बुलंद करना सीखिए– मोबाइल चलाना सीख लिया है थोड़ी देर बंद करना सीखिए” जैसी गहरी रचनाएं प्रस्तुत कीं।
इसके बाद आए अज्म शाकिरी ने अपने तमाम शेर “आंसुओं से चित्रकारी कर रहा हूं, जिस जगह पहले से ज़ख्म हैं फिर वहीं पर चोट मारी जा रही है, मोहब्बत बे इरादा मिल गई है, मेरा किरदार कहानी में कहीं डूब गया” तथा ग़ज़ल “प्यास होठों पे ले के आते हैं, और प्यासे ही लौट जाते हैं” और “आंख में सैलाब का मंजर बना लेता हूं मैं, फिर वहीं पर रेत का एक घर बना लेता हूं मैं” सुना कर सभी की ख़ूब वाहवाही लूटी।
तत्पश्चात शायरा नुसरत अतीक साहिबा ने अपनी रचनाओं “उंगलियां बात करती रहती हैं, पहली नज़र में इतनी मोहब्बत ना कीजिए– दिमाग से बगवात न कीजिए, तुमने ही आशिक़ी को ठिकाना बना लिया, इश्क में इश्क की शिद्दत हो तो घर शबरी के– बेर खाने को श्रीराम भी आ जाते हैं” तथा तरन्नुम “जिंदगी इस तरह गुजारी है, एक पल इक सदी पे भारी है..”
इसके बाद वरिष्ठ कवि फ़हीम बदायूंनी साहब ने ‘तुमने नाराज़ होना छोड़ दिया, इतनी नाराज़गी अच्छी नहीं..’, ‘जिसको हर वक्त देखता हूं मैं, उसको बस एक बार देखा है’ ‘जब भी गुब्बारे फूल जाते हैं, पहले क्या थे भूल जाते हैं’, ’समंदर उल्टा सीधा बोलता है, सलीके से तो प्यासा बोलता है’ जैसी रचनाओं से अपनी शायरी की गहराई का एहसास काव्य प्रेमियों को करवाया।
मुंबई से आए देश के प्रसिद्ध कवि राजेश रेड्डी ने “सर कलम होंगे कल यहां उनके–जिनके मुंह में ज़बान बाकी है”, “घर में हम चार लोग रहते हैं, दो तो हम दो हमारे मोबाइल”, “किसी भी जिंदगानी में करिश्मा क्यों नहीं होता, मैं हर दिन जाग तो जाता हूं जिंदा क्यों नहीं होता”, ” शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूं मैं, मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूं मैं” “मुकम्मल हो नहीं पाया अभी मैं, अभी कुछ खामियां कम पड़ रही हैं”, “फूल के होठों से खुशबू के मयानी सुन कर, अपना शेर अच्छा लगा तेरी जुबानी सुन कर”, एक आंसू कोरे कागज़ पर गिरा, और अधूरा खत मुकम्मल बन गया” जैसी रचनाओं से उपस्थित श्रोताओं को साहित्य के सागर में गोते लगाने को विवश कर दिया। काव्य और शायरी की यह महफ़िल देर रात तक चलती रही।
कार्यक्रम के सूत्रधार वरिष्ठ कवि कलीम क़ैसर रहे। संचालन आकृति विज्ञ ने किया।