GO GORAKHPUR: सिनेमा और साहित्य पर केंद्रित गुफ्तगू सत्र में गुज़रे ज़माने की प्रसिद्ध सिनेमा अदाकारा और लेखिका दीप्ति नवल ने अपने अनुभव साझा करते हुए अपनी कृति ‘अ कंट्री कॉल्ड चाइल्डहुड’ के बारे में अपनी बातें साझा करते हुए कहा कि उनका बचपन मेरे पिताजी कला के अद्भुत प्रेमी थे और मेरा उपनाम ‘नवल’ उन्होंने ही रखा था. मेरे घर में मेरे दादाजी कट्टर जनसंघी थे और मेरी दादी पक्की कांग्रेसी थीं. खाने की मेज पर अक्सर बहस मुबाहिसा का दृश्य ज़रूर रहता था पर उनमें कभी भी टकराहट नहीं हुआ करती थी.अपने भाई बहनों के साथ बिताए लम्हों के सवाल पर उन्होंने बताया कि बचपन में वे सभी भाई बहनों के साथ खूब मस्ती किया करतीं थीं और उन्होंने अपने घर में खूब शैतानियां कीं थीं.
अमृतसर से न्यूयॉर्क की यात्रा के सवाल पर उन्होंने कहा कि अमृतसर स्वाभाविक रूप से मेरी ज़िंदगी के शुरुआती चरण का एक अहम केंद्र रहा है पर जब मैं अमेरिका गई और मैने वहां अपनी पढ़ाई शुरू की तो मेरा नज़रिया भी बदला खासकर अभिनय को लेकर मैने वैश्विक सिनेमाई परिदृश्य में बहुत से बदलावों को महसूस किया.
दीप्ति नवल |
सिनेमा से जुड़ाव के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे और उनकी माँ मीना कुमारी के बहुत बड़े फैन थे. उनके हाव भाव और व्यक्तित्व ने मुझे इस कदर प्रभावित किया कि मैं सिनेमा से जुड़ती चली गयी और मैने उनका अनुकरण भी किया. और मेरे लिए सबसे बड़ी खुशनसीबी यह रही कि लोगों ने मुझे मीना कुमारी से जोड़ना भी शुरू कर दिया.
भारत चीन युद्ध के समय की बातें साझा करते हुए उन्होंने लद्दाख, पंजाब और उत्तर भारत के जनजीवन पर पड़े प्रभाव और उसके आईने में सिनेमा जगत पर पड़े प्रभाव की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह फौजियों को देखने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे, महिलाएं उनके लिए खाने पीने के इंतजाम में लग जातीं थीं, भय के माहौल के बीच किस तरह लोग घरों में छुपते थे और उत्साह में बच्चे बाहर भागा करते थे. मेरे पिताजी उस समय महिलाओं को सीमा पर भेजने के पक्षधर हुआ करते थे जिनसे हमें भी कुछ नया करने की प्रेरणा मिली.
लाहौर और अमृतसर के बीच के समाज में उस समय ज़िंदगी के उन खूबसूरत लम्हों की तुलना युद्ध की निंदा से हुआ करती थी. उनके परिवार ने तो विश्वयुध्द से लेकर भारत के विभाजन की त्रासदी तक को देखा. मेरे ज़िंदगी का साहित्य मेरी माँ की कहानियों से है. मेरी परवरिश में धार्मिकता का अभाव ही रहा. युद्ध और प्रवजन के बीच की कहानियों के बीच ही मैं पली बढ़ी और मेरी ज़िंदगी अनवरत यात्रा की तरह चलती रही.
उन्होंने अपने पुस्तक के कुछ चुनिंदा अंशों का पाठ भी किया और अपने बचपन के कुछ चुटीले अनुभव भी साझा किए. सत्र का मॉडरेशन दिव्यांशी श्रीवास्तव ने किया. कार्यक्रम का संचालन प्रकृति त्रिपाठी ने किया.