ज्ञान प्रकाश राय की स्मृति में ग्रन्थ ‘ज्ञान बाबू’ का लोकार्पण
पत्रकार समाज की आंख होता है
अपने उद्बोधन में प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ज्ञान बाबू की यादें साझा करते हुए कहा कि पत्रकार समाज की आंख होता है. वह समाज में लोक का प्रतिनिधित्व करता है. स्वाधीनता का मूल्य जिसके भीतर होगा उसमें साहस और प्रतिरोध जरूर होगा. भारतेंदु युग के सारे लेखक पत्रकार थे. साहित्य का आधिकतर समाज पत्रकारिता का है. पत्रकारिता का इतिहास साहित्य के साथ ही चलता रहा है. आज उदारीकरण और पूँजी का प्रभाव आदि ने पत्रकारिता के प्रतिरोध की क्षमता कम कर दी है. पत्रकार को स्वतंत्र आवाज के रूप में बोलना चाहिए. इससे उसकी विश्वसनीयता व असर समाज पर अधिक पड़ता है.
साहित्य और पत्रकारिता एक ही वृन्द के फूल : प्रो चितरंजन
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो अनंत मिश्र ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता एक ही वृन्द के फूल हैं. प्रो चितरंजन मिश्र ने कहा कि आज सत्ता असहमति की आवाज का क्रूरता से दमन कर रही है और मीडिया का बड़ा वर्ग इसकी मुखालफत करने के बजाय इसको जायज ठहराने में लगा है. इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है. पूंजी से जुड़ी पत्रकारिता बुलडोजर पत्रकारिता हो गई है.
आज पत्रकार स्वध्याय से दूर है : हर्षवर्धन शाही
ज्ञान प्रकाश राय पत्रकारिता सम्मान की चयन समिति के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार एवं वर्तमान में सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने अपने वक्तव्य में कहा कि दशरथ प्रसाद द्विवेदी और ज्ञान बाबू उनके आदर्श रहे हैं. ‘ स्वदेश ’ और दशरथ प्रसाद द्विवेदी पर पूर्व में लिखा गया लेकिन इस स्मृति ग्रन्थ के जरिए गोरखपुर की पत्रकारिता के इतिहास के एक कालखंड को सामने लाने का प्रयास किया गया है जिसे बड़े पुरोध ज्ञान बाबू रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज पत्रकार स्वध्याय से दूर है और लिखने-बोलने की आजादी के लिए वह कुछ भी त्याग करने को तैयार नहीं है जबकि भारतीय पत्रकारिता ने इन मूल्यों की रक्षा में सदैव बड़ी कीमत चुकायी है.
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं पत्रकारिता पाठ्यक्रम के समन्वयक प्रो राजेश मल्ल ने कहा कि आज का कार्यक्रम इस मायने में अनूठा है कि हम एक साथ तीन पीढ़ी के पत्रकारों के साथ संवाद कर रहे हैं. स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन व इस कार्यक्रम का आयोजन भले ज्ञान बाबू के परिजनों ने किया है लेकिन उनक यह उद्यम समाज, पत्रकारिता के लिए मानीखेज है.
अमर उजाला के स्थानीय सम्पादक एवं कवि अरुण आदित्य ने कहा कि दौर भले बदल गया हो लेकिन पत्रकारिता को आज कैरियर और स्टैंड में से किसी एक को चुनना पड़े तो उसे स्टैंड को ही चुनना चाहिए. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आज के युवा पत्रकार ज्ञान बाबू के आदर्शो से सीख लेंगे.
प्रथम ज्ञान प्रकाश राय स्मृति पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय पत्रकारिता का जन्म ही व्यवस्था से टकराव और बोलने की आजादी के लिए राज्य दमन के सामना से हुआ है.
कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रो. अनिल राय ने कहा कि ज्ञान बाबू ने पत्रकारिता की अपनी जो परम्परा बनायी है उसको निभाना आज के पत्रकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है लेकिन सच्ची पत्रकारिता के लिए यह जरूरी भी है.
महराजगंज से आये वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण मोहन अग्रवाल ने वर्तमान दौरा में पत्रकारिता में मूल्यों के गिरावट पर चिंता जताते हुए ज्ञान बाबू की स्मृतियों को स्मरण किया. इस मौके पर स्मृति ग्रन्थ के संस्मरण लेखकों वरिष्ठ पत्रकार श्यामानंद, जमीर अहमद पयाम, कृष्ण मोहन अग्रवाल, हर्षवर्धन शाही, राम मूर्ति, जितेंद्र राय को सम्मानित किया गया. धन्यवाद ज्ञापन ज्ञान प्रकाश राय पत्रकारिता संस्थान के संयोजक कथाकार रवि राय ने किया.
ज्ञान बाबू का पत्रकारिता का सफ़र
पूर्वांचल में वर्ष 1945 से 1980 तक स्वर्गीय ज्ञानप्रकाश राय की पत्रकारिता का कार्यकाल रहा.शुरुआती दौर में समाचार एजेंसी से जुड़े रहे. वे सन 1949 में लखनऊ के अंग्रेजी दैनिक नेशनल हेराल्ड और 1952 में बनारस से प्रकाशित हिंदी दैनिक आज के गोरखपुर प्रतिनिधि बनाए गए. एक ट्रेन दुर्घटना में घायल होने के बाद 1980 से उन्होंने सक्रिय पत्रकारिता से संन्यास ले लिया. उनका देहांत 2002 में गोरखपुर में हुआ.