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शब्द, सत्ता का निर्माण और विनाश दोनों कर सकते हैं: प्रो. विश्वनाथ तिवारी

गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के बहुप्रतीक्षित सातवें संस्करण का आगाज़
गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के बहुप्रतीक्षित सातवें संस्करण का आगाज़
गोरखपुर ​लिट फे​स्ट 2024 का दीप जलाकर शुभारंभ करते अतिथिगण. फोटो: आयोजन समिति

Gorakhpur: गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के बहुप्रतीक्षित सातवें संस्करण का आगाज़ शनिवार को शहर के होटल विवेक के सभागार में हुआ. पहले दिन के कार्यक्रम को 5 सत्रों में विभाजित किया गया, जिनमें साहित्य, समाज, संस्कृति, धर्म, मीडिया और राजनीति जैसे विषयों पर व्यापक चर्चा हुई. देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए विशेषज्ञों ने इन विषयों की सामाजिक संदर्भ में समकालीन व्याख्या प्रस्तुत की. इस आयोजन में देश भर के प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार, संस्कृति कर्मी, राजनीतिज्ञ और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे.

1. उद्घाटन सत्र

शब्दों की सत्ता विषय पर केंद्रित उद्घाटन सत्र में वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किए. शिवमूर्ति ने साहित्य उत्सवों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसे आयोजन लेखक और पाठक के बीच के संबंध को मजबूत करते हैं. उन्होंने शब्दों की शक्ति और उनके महत्व को रेखांकित किया. डॉ. सूर्यबाला ने शब्दों की स्वतंत्रता और उनकी सीमाओं पर चर्चा की. असगर वजाहत ने आत्म-प्रशंसा की निंदा करते हुए देश की विविधता और वास्तविक विकास के महत्व पर बल दिया. पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने शब्दों की सर्वशक्तिमानता पर जोर दिया और कहा कि शब्द सत्ता का निर्माण और विनाश दोनों कर सकते हैं. 

इससे पूर्व प्रो. विश्वनाथ तिवारी का सम्मान आयोजन समिति के शैवाल शंकर ने किया. शिवमूर्ति का सम्मान आयोजन समिति के डॉ. कुमार संजय ने किया. डॉ. सूर्यबाला का सम्मान आयोजन समिति की उपाध्यक्ष अनुपम श्रीवास्तव ने किया. असगर वजाहत का सम्मान आयोजन सचिव महेश वालानी ने किया. विषय प्रवर्तन स्वागत समिति के अध्यक्ष व शिक्षाविद डॉ. संजयन त्रिपाठी ने किया, जबकि सत्र संचालन डॉ. चारुशीला शाही ने किया.

2. साहित्य सत्र

डायरी के पन्नों से डिजिटल प्लेटफॉर्म तक विषय पर केंद्रित साहित्य सत्र में डिजिटल युग में साहित्य के प्रकाशन और इसके प्रभावों पर चर्चा की गई. प्रभात रंजन ने वेब पोर्टल के माध्यम से साहित्य के प्रकाशन के सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला. मनीषा कुलश्रेष्ठ ने डिजिटल क्रांति के साहित्य पर प्रभाव और ई-पत्रिकाओं के महत्व पर चर्चा की. देवेंद्र आर्य ने सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के माध्यम से साहित्य तक पहुंच बढ़ने के लाभों पर प्रकाश डाला, लेकिन साथ ही साहित्य और पत्रकारिता के बीच के संबंधों में आई गिरावट पर चिंता व्यक्त की.

दूसरे सत्र में अतिथि वक्ताओं जैसे मनीषा कुलश्रेष्ठ का सम्मान डॉ. उषा कुमार ने किया. प्रभात रंजन का सम्मान दिव्येन्दु नाथ श्रीवास्तव ने किया तथा देवेंद्र आर्य का सम्मान शबनम श्रीवास्तव ने किया. इस सत्र के संचालन का दायित्व मृत्युंजय उपाध्याय नवल का रहा, जबकि सत्र सूत्रधार डॉ. आमोद राय रहे.

3. महिला राजनीति सत्र

नए मोड़ नए मुकाम विषय पर केंद्रित महिला राजनीति सत्र में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और चुनौतियों पर चर्चा की गई. महुआ मांझी ने महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनने और सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ने की सलाह दी. शाम्भवी चौधरी ने अपने राजनीतिक सफर और महिलाओं के लिए राजनीति में आने की राह में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताया. 

इस सत्र में शाम्भवी चौधरी का सम्मान सावित्री दास ने किया, ज​बकि महुआ मांझी का सम्मान जयश्री लाहिड़ी ने किया. सत्र का संचालन दिव्यांशी श्रीवास्तव और सत्र सूत्रधार प्रकृति त्रिपाठी रहीं.

4. आध्यात्मिक सत्र

धर्म, सत्ता व समाज विषय पर केंद्रित आध्यात्मिक सत्र में धर्म की भूमिका और उसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों पर चर्चा की गई. डॉ. उमेर अहमद इलियासी ने धर्म की एकता पर जोर दिया और सभी मान्यताओं के सम्मान की आवश्यकता पर बल दिया. स्वामी दीपांकर ने धर्म के वास्तविक अर्थ पर प्रकाश डाला और जातिवाद की निंदा की. 

चौथे सत्र का संचालन अमृता धीर मेहरोत्रा ने किया, जबकि सत्र सूत्रधार भव्य श्रीवास्तव रहे.

5. मीडिया

पहले दिन का पांचवां सत्र मीडिया की साख पर केंद्रित रहा. ‘साख पर सवाल’ सत्र में पत्रकार सौरव शर्मा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मीडिया में पारदर्शिता के कारण पत्रकारिता पहले से अलग है, और उन्होंने मीडिया के जनता के साथ खड़े होने पर जोर दिया. राशिद किदवई ने कहा कि सोशल मीडिया ने मीडिया को सशक्त बनाया है, लेकिन इसका दुरुपयोग खतरनाक है. उन्होंने मीडिया की निष्पक्षता पर जोर दिया और पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के आरोपों पर चिंता व्यक्त की. पांचवें सत्र के संचालक आशीष श्रीवास्तव रहे, जबकि सत्र के सूत्रधार प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा थे.

गो गोरखपुर

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