
Janmashtami Geeta Vatika Gorakhpur: नाथ नगरी गोरखपुर में राधा-कृष्ण का एक ऐसा मंदिर है, जहां नारदमुनि स्वयं पहुंचे थे. इस पर यकीन करना शायद तथ्यों को जाने बिना मुश्किल लगे, लेकिन इस मंदिर के इतिहास में यह वाकया जिसकी जुबानी दर्ज है, वह हैं संत हनुमान प्रसाद पोद्दार. गोरखपुर में गीता वाटिका की स्थापना करने वाले भाई जी यानी हनुमान प्रसाद पोद्दार को नारद मुनि ने मंदिर के प्रांगण में ही दर्शन दिए थे. जन्माष्टमी ही नहीं, पूरे वर्ष राधा कृष्ण के भक्तिरस में डूबे रहने वाले गीता वाटिका के प्रांगण की एक दीवार पर नारद मुनि के प्रकट होने की इस घटना का विवरण दर्ज है.
अंग्रेजी हुकूमत में 21 महीने काटी नजरबंदी: क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के चलते अंग्रेजी सरकार ने हनुमान प्रसाद पोद्दार को साल 1916 से 1918 तक बंगाल के शिमलापाल में 21 महीने तक नजरबंद रखा था. हनुमान प्रसाद पोद्दार ने अपने ग्रंथों में इस नजरबंदी का जिक्र किया है. इसी बंदी जीवन में उन्होंने तप, ध्यान, साधना की धारा को आत्मसात कर लिया. नजरबंदी के दौरान उन्होंने देवर्षि नारद के भक्तिसूत्रों का गहन अध्ययन किया. बंबई से कल्याण पत्रिका का प्रकाशन शुरू करने के बाद उन्होंने धारावाहिक के रूप में भक्तिसूत्रों का भावार्थ प्रकाशित किया. यह पुस्तक के रूप में गीता प्रेस से ‘प्रेम दर्शन’ नाम से प्रकाशित हुआ. नारद मुनि के भक्तिसूत्र भाईजी यानी हनुमान प्रसाद पोद्दार के हृदय में गहरे बसे थे.
सपना, जो अगले दिन ही सच हुआ: बात साल 1936-37 की है. गीता वाटिका में अखंड हरिनाम संकीर्तन चल रहा था. यह आयोजन पूरे साल चलने वाला था. फरवरी का महीना था. एक दिन भाई जी को दिन में विश्राम के वक्त सपने में दो ऋषि दिखे. भाई जी ने उनसे परिचय पूछा तो उन्होंने अपना नाम देवर्षि नारद और महर्षि अंगीरा बताया. सपने में देवर्षि नारद ने भाई जी से कहा कि हम लोग कल दिन में तीन बजे तुमसे मिलने आएंगे. भाई जी इस स्वप्न से रोमांचित हो उठे. निद्रा तो खुल गई, लेकिन वह सृष्टि के संकेतों को बखूबी समझ रहे थे.
ठीक तीन बजे पहुंचे देवर्षि नारद और महर्षि अंगीरा: मंदिर की दीवार पर दर्ज लेख के अनुसार, देवर्षि नारद के आगमन की प्रत्याशा में उन्होंने मंदिर प्रांगण में भूमि की सफाई कराई और वहां एक बेंच रखवाकर उस पर दो आसन लगा दिए. गीता वाटिका में पश्चिम ओर मुख वाला जो मुख्य भवन है, उसके बाहरी बरामदे में भाई जी स्वयं बैठ गए. दिन में ठीक तीन बजे श्चेत वस्त्र पहने दो विप्र वहां पहुंचे. कहा जाता है कि उस दिन बसंत पंचमी थी. उन दोनों के मुख पर कांति थी. भाई जी उन्हें पहचान गए और साक्षात नारद मुनि तथा महर्षि अंगीरा के दर्शन कर भाव विह्वह हो उठे. भाई जी दोनों ऋषियों को ससम्मान लेकर मंदिर के पिछले हिस्से में उनके लिए लगाए गए आसन पर पहुंचे. कहा जाता है कि वहां दोनों ऋषि जैसे ही आसन पर विराजमान हुए उनके असली रूप प्रकट हो गए.
वत्स तुम्हारा मंगल हो!
भाई जी ने दोनों ऋषियों के दिव्य दर्शन किए. कहा जाता है कि देवर्षि नारद ने इस जगह पर हनुमान प्रसाद पोद्दार से भगवद विषय पर चर्चा भी की. हनुमान प्रसाद पोद्दार को दर्शन देते हुए देवर्षि नारद ने उनसे कहा, वत्स तुम्हारा मंगल हो! तुम्हारी वृत्तियां सात्विक हैं. समाधि के द्वारा वृत्तियों को समाहित करके भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं में तल्लीन होकर उनको परम श्रेष्ठ के रूप में प्राप्त करो.
-
Barbecue Party Tips For As Truly Amazing Event
-
Sony Laptops Are Still Part Of The Sony Family
-
रामगढ़ झील का एक चक्कर लगाने के लिए 18 किमी चलना पड़ेगा