कुछ अनजाने तथ्य…
फोटो: सोशल मीडिया, यूपी गवर्नमेंट
स्क्रिप्ट: डॉ. तृप्ति श्रीवास्तव
महाकुंभ 2025
कुंभ मेले का मौजूदा स्वरूप:
कुंभ मेले को व्यावहारिक स्वरूप देने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है.
मेले का उद्देश्य:
कुंभ मेले का प्रचार धर्म, संस्कृति को मजबूत करने और विश्व के कल्याण के लिए हुआ था.
आदि शंकराचार्य का काल 8वीं सदी है. उस वक्त प्रयाग कुंभ की व्यवस्थित रूप से शुरुआत हुई थी.
14वीं सदी में अलाउद्दीन ने प्रयाग में स्नान पर धार्मिक कर लगाया था, जो आगे भी जारी रहा.
मुगल काल में प्रयाग में स्नान पर 'कर' को अकबर ने हटाया, लेकिन शाहजहां ने फिर से लगा दिया.
16वीं शताब्दी में, चैतन्य महाप्रभु मकर संक्रांति के दौरान प्रयाग आए और दशाश्वमेध घाट के पास रुके.
अकबर द्वारा राजा बीरबल की उपाधि प्राप्त महेशदास (ब्रह्मभट्ट) 1575 ई. में कुंभ स्नान के लिए प्रयाग आए.
1583 में अकबर ने संगम पर किले का निर्माण कराया. इससे कई वर्षों तक कुंभ मेला बाधित रहा.
मुगल पतन के बाद प्रयाग मराठा नियंत्रण में आ गया. अखाड़ों के जुलूस को 'पेशवाई' कहा जाने लगा.
1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद इलाहाबाद और कड़ा शाह आलम को दे दिए गए.
ब्रिटिश उपस्थिति के बावजूद, इलाहाबाद में मराठा प्रभाव कायम रहा, जिसका असर कुंभ पर पड़ा.
कुंभ का पहला अंग्रेजी विवरण 1796 में हरिद्वार कुंभ का है, जिसे कैप्टन थॉमस हार्डविक ने लिखा था.
कुंभ दुनिया का इकलौता सांस्कृति आयोजन है जिसकी विशालता और व्याप्ति बेजोड़ है.
महाकुंभ 2025: कहानी कुंभ मेले की…