फ़िराक की नज़र से ज़िंदगी को देखेंगे, तो कह उठेंगे- 'आह!'

Presented by: Go Gorakhpur

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

मौत का भी कोई इलाज हो शायद.  ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं.  तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

ये माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की. बहुत होते हैं यारो चार दिन भी.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन  ऐ दोस्त. वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में. ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात. 

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

ज़िंदगी इंतिज़ार  है तेरा.  हम ने इक बात आज जानी है.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

रुकी-रुकी सी शबे-मर्ग खत्म पर आई. वो पौ फटी, वो नई ज़िन्दगी नज़र आई.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

भूल बैठा है तू कह के जो बात. वो मेरी ज़िन्दगी हो गई है.

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िन्दगी को वफ़ा की राहों में मौत खुद रोशनी दिखाती थी

रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी (28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982)

दिल को शोलों से करती है सैराब ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी