दुबे जी! कोई अच्छा घर परिवार बताइए. मेरे एक मित्र हैं. उनके एक ही बेटा है. इन दिनों वह हैदराबाद में किसी बड़ी कंपनी में बड़े ओहदे पर है. वे पूर्वांचल के रहने वाले हैं. अच्छी खेती-बारी है. दिल्ली में भी फ्लैट है. बेटे को आवास और गाड़ी कंपनी की तरफ से मिली हुई है. दो बेटियां थीं. उनकी शादी कर दी. एक यही बेटा है. चाहते हैं कि खानदानी घर-परिवार की लड़की हो. दहेज की कोई बात नहीं है.
दुबे जी, बाबू साहब की बात सुनकर काफी देर चुप रहे. वे तत्काल कोई उत्तर देने की स्थिति में अपने को नहीं पा रहे थे. काफी देर बाद उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, “बड़ा कठिन काम आपने सौंपा.”
90 के दशक, यहां तक की 2000 तक इस काम में संबंधित बिरादरी के रिश्तेदारों की भूमिका महत्वपूर्ण हुआ करती थी. किसी परिवार का लड़का पढ़ लिखकर बीए, एमए तक पहुंचा, परिवार में दस बीघे खेती है. वरदेखुआ आ धमकते थे. रिश्ता तय हो जाता था. मध्यस्थता करने वाले रिश्तेदारों के इस कार्य को प्रतिष्ठापरक, पुनीत माना जाता रहा. अब विपरीत बात हो गई है. कोई रिश्तेदार किसी की बेटी, बेटा के विवाह की मध्यस्थता, अगुवाई नहीं करना चाहता.
तब के और अब के समाज और परिवार के मनोविज्ञान में काफी अंतर आ चुका है. पहले के समय पर विचार करें – तब शादियां दो परिवारों का मिलन हुआ करती थीं. यह एक दूसरे के प्रति एक तरह का समर्पण भी था. अब यह खत्म हो गया है.
किसी और के चिराग का, शोषण नहीं किया हमने,
खुद ही को जलाकर, खुद को रोशन किया हमने.
अब इसकी जगह व्यक्तिवाद और अहंकार ने ले ली है. रिश्तेदारों की बात कौन करे पति-पत्नी के संबंध भी अब समर्पण, समझौते के नहीं रह गए. अब दोनों एक-दूसरे के प्रतिपूरक की जगह बराबर के साझीदार की मानसिकता में जीते हैं. शिक्षा ने ज्ञान का विकास कितना किया, यह बहस का मुद्दा है. इसने बाजारबाद की संस्कृति को इतना पुष्पित कर दिया कि समर्पण खत्म सा है. नतीजा रोज-रोज की किचकिच और शिकायतें.
अब रिश्तेदार अथवा मध्यस्थ अपनी बदनामी समझने लगे हैं. वे इस पुनीत कार्य से अपना हाथ खींच चुके हैं.
इसकी जगह बाजार ने ले ली है. बाजार ने रिश्ते तय करने के लिए मैरिज काउंसलिंग सेंटर्स, ऐप विकसित कर रखे हैं. इच्छुक लोग इस पर अपना पंजीकरण कराते हैं. इस सेवा के बदले एजेंसियां फीस लेती हैं. अब शादी समर्पण नहीं कॉन्ट्रैक्ट है. इसीलिए आप प्रायः देख रहे होंगे, जो शादियां हो रही हैं रजिस्ट्रार के वहां इसका पंजीयन कराए जाने का चलन बड़ी तेजी से हो चला है. रिश्तो में आई खटास और विवाद परिवार के घेरे में तय न होकर अदालतों में तय होने लगे हैं .
आज टूटता एक तारा देखा, बिल्कुल मेरे जैसा था.
चांद को कोई फर्क ना पड़ा, बिल्कुल तेरे जैसा था.
इसी तरह खानदानी का भी अर्थ बदल चुका है. पहले खानदानी का मतलब मानवीय मूल्यों में विश्वास करने वाला परिवार, बाजार की कुप्रवृत्तियों से काफी दूर. अपना परिश्रम, अपना उगाना, अपना खाना, अतिथि की सेवा और समाज का भला सोचते रहना. अब खानदानी मतलब दौलतमंद.
जो खानदानी रईस हैं, वो नर्म रखते मिजाज अपना.
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है.
-
एमएमएमयूटी न्यूज़ | मदन मोहन मालवीय समाचार | mmmut news | mmmut news in hindi today
-
गोरखपुर समाचार: आज की मुख्य खबरें
-
यूपी न्यूज़ हिंदी | यूपी की ताज़ा ख़बरें | यूपी आज की ख़बरें | UP News today in Hindi | Uttar Pradesh Live
-
गोरखपुर अपराध समाचार | गोरखपुर क्राइम न्यूज़ | Gorakhpur Crime | Latest News Gorakhpur
-
पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर का ताज़ा हिंदी समाचार। NER न्यूज़, गोरखपुर रेलवे अपडेट | आज की रेलवे खबरें
-
गोरखपुर नगर निगम न्यूज़ | Nagar Nigam Gorakhpur News | Municipal Corporation Gorakhpur News
-
डीडीयू न्यूज़ | गोरखपुर विश्वविद्यालय | डीडीयू समाचार | DDU News | Deen Dayal Upadhyay University
-
DDUGU ने शोध के क्षेत्र में गढ़े नए मानक, पीएचडी, पेटेंट और अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में ऐतिहासिक वृद्धि
-
सपा नेताओं ने महर्षि वाल्मीकि को किया याद, ‘सत्य और कर्तव्य’ के मार्ग पर चलने का लिया संकल्प
-
कैम्पियरगंज: प्रेम-प्रसंग से नाराज़ भाई ने बहन को नहर में डुबोकर मारा, खुद पुलिस को दी वारदात की सूचना